त्रिसंध्या नामक यह तीर्थ सरस्वती नदी के एक पुरा प्रवाह मार्ग पर स्थित है। यहां से होकर सरस्वती पिहोवा नगर में प्रवेश करती थी। लोककथाओं के अनुसार इस तीर्थ पर कौरवों की सौ विधवाओं ने पवित्र स्नान किया और फिर वह सभी पास के एक अन्य तीर्थ सौरांडा पर सती हो गई थी। इस तीर्थ से 8वीं-9वीं शती ई. के राजपूत कालीन घाटों के अवशेष मिले हैं। यहां से 10वीं-11वीं शती की उमा महेश्वर की प्रस्तर मूर्ति भी प्राप्त हुई है।