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सूर्यकुण्ड नामक यह तीर्थ कैथल से 24 कि.मी. दूर हाबड़ी ग्राम में स्थित है।
हाबड़ी नामक ग्राम में स्थित सूर्यकुण्ड के नाम से विख्यात उक्त तीर्थ सूर्यदेव से सम्बन्ध्ति रहा है। महाभारत एवं पौराणिक साहित्य में सूर्य तीर्थ का स्पष्ट वर्णन उपलब्ध होता है जहाँ स्नान करके देवताओं एवं पितरों की अर्चना करके उपवास करने वाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञ के फल को पाता है एवं सूर्यलोक को जाता है।
सूर्यकुण्ड तीर्थ से सम्बन्धित एक जनश्रुति के अनुसार महाभारत के विनाशकारी महायुद्ध के पश्चात् इसी स्थान पर ऋर्षि-महर्षियों ने युद्ध में मारे गए योद्धाओं की मोक्ष प्राप्ति के लिए अनन्य भाव से सूर्यदेव की आराधना की थी जिससे इस तीर्थ का नाम सूर्यकुण्ड पड़ गया।

इस तीर्थ पर सूर्य ग्रहण तथा सोमवती अमावस्या को मेला लगता है। इस तीर्थ का सर्वाधिक वैशिष्ट्य इसलिए भी है कि यहाँ हिन्दु, सिक्ख तथा मुस्लिम जनों के तीर्थ स्थल साथ-साथ हैं जो धार्मिक एवं साम्प्रदायिक सद्भावना एवं एकता को अधिकाधिक मजबूत करते हैं।
तीर्थ स्थित घाटों का निर्माण लाखौरी ईंटों से हुआ है। घाट की सीढ़ियों के पास मेहराबी कक्ष हैं। तीर्थ परिसर में नागर शिखर युक्त एक मन्दिर है जिसकी छत पर रासलीला आदि प्रसंगों का चित्रण है। मन्दिर के गर्भगृह की दीवारों पर रामदरबार, शंकर पार्वती व गणेश के चित्र हैं।

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