यह तीर्थ जीन्द से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर पाण्डु पिण्डारा नामक ग्राम में स्थित है। इस तीर्थ को महाभारत, वामन पुराण तथा पद्म पुराण में सोम (चन्द्रमा) देवता से सम्बन्धित बताया गया है। महाभारत के शल्य पर्व में एवं स्कन्द पुराण की कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष की अनेक कन्याएं थी जिनमें से 27 का विवाह सोमदेव के साथ हुआ था। अपने अतुलनीय सौन्दर्य के कारण रोहिणी चन्द्रदेव की सर्वाधिक प्रिय थी। परिणामतः रोहिणी की शेष बहनें चन्द्रदेव से रुष्ट हो गई। तत्पश्चात् वे सभी मिलकर अपने पिता दक्ष के समीप चन्द्रदेव के पक्षपातपूर्ण व्यवहार की शिकायत करने र्गइं। प्रजापति दक्ष ने सोम को समझाया कि उन्हें सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। किन्तु दक्ष के समझाने पर भी सोमदेव के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया । इस पर दक्ष ने क्रोधित होकर सोमदेव को राजयक्ष्मा नामक भयंकर रोग होने का श्राप दिया। जिससे चन्द्रमा प्रतिदिन क्षीण होने लगा। रोग से मुक्त होने के लिए उनके द्वारा किया गया प्रत्येक प्रयास व्यर्थ रहा। सोमदेव की इस दयनीय दशा को देखकर देवताओं को बड़ा दुख हुआ। दुखी हुए सभी देवता दक्ष के पास जाकर सोमदेव से श्राप को हटाने की प्रार्थना करने लगे। तब दक्ष ने कहा कि यदि सोमदेव अपनी सभी स्त्रियों से समान व्यवहार करें और सरस्वती के श्रेष्ठ तीर्थ में स्नान करें तो पुनः स्वस्थ व पुष्ट हो जाएंगे। दक्ष के इस कथन को सुन सोम सरस्वती के प्रथम तीर्थ प्रभास क्षेत्र में गए तथा अमावस्या के दिन उस पवित्र तीर्थ में स्नान किया। तब वह शीतल किरणों से युक्त हो कर समग्र संसार को प्रकाशित करने लगे।
महाभारत के अनुसार जयन्ती (जीन्द) में स्थित सोम तीर्थ में स्नान करने पर मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
ततो जयंत्यां राजेन्द्र सोमतीर्थं समाविशेत्।
स्नात्वा फलमवाप्नोति राजसूयस्य मानवः।
(महाभारत, वन पर्व 83/19)
प्रचलित विश्वास के अनुसार इसी स्थान पर पाण्डवों ने बारह वर्ष तक सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा की थी। जनश्रुति के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों ने इसी स्थान पर अपने पूर्वजों के पिण्ड दान किए थे। प्रत्येक सोमवती अमावस्या के दिन यहां बड़ा भारी मेला लगता है।