सोम तीर्थ
The place where Aditi, the mother of Gods undertook penances
यह तीर्थ पेहवा से 9 कि.मी. तथा कुरुक्षेत्र से लगभग 37 कि.मी. की दूरी पर गुमथला गढु नामक ग्राम में स्थित है। इस तीर्थ का वर्णन महाभारत, वामन पुराण एवं पद्म पुराण में मिलता है। वामन पुराण में इस तीर्थ को सोम देव से सम्बन्धित बताया गया है। दक्ष प्रजापति के श्रापवश एक बार सोमदेव भयंकर राजयक्ष्मा रोग से पीड़ित हो गए थे। तत्पश्चात् देवताओं के आग्रह पर दक्ष प्रजापति के आदेशानुसार सोम ने इस स्थान पर उग्र एवं कठोर तप द्वारा स्वयं को उस भीषण व्याधि से मुक्त कर लिया था:
ततो गच्छेत् विप्रेन्द्राः सोमतीर्थमनुत्तमम्।
यत्र सोमस्तपस्तप्त्वा व्याधिमुक्तः अभवत् पुरा।
तत्र सोमेश्वरं दृष्ट्वा स्नात्वा तीर्थवरे शुभे।
राजसूयस्य यज्ञस्य फलं प्राप्नोतिमानव:।
व्याधिभिश्च विनिर्मुक्तः सर्वदोषविवर्जितम्।
सोमलोकमवाप्नोति तत्रैव रमते चिरम्।
(वामन पुराण 34/33-35)
अर्थात् जिस स्थान पर सोम देव तप करके व्याधि मुक्त हुए ऐसे उस श्रेष्ठ सोमतीर्थ में स्नान कर एवं वहाँ स्थित सोमेश्वर का दर्शन करने पर मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है तथा समस्त रोग, शोक व दोष से मुक्त हो सोमलोक को प्राप्त कर चिरकाल तक वहाँ आनन्दपूर्वक निवास करता है।
वामन पुराण में अन्यत्र ऐसा भी उल्लेख है कि यहाँ पर सोम ने अत्यन्त उग्र तपस्या करके द्विज राज्य को प्राप्त किया था तथा इस तीर्थ के महत्त्व के विषय में लिखा है कि इस तीर्थ में स्नान करके देवों और पितरों की पूजा करने वाला मनुष्य कार्तिक मास के चन्द्रमा के समान निर्मल होकर स्वर्ग को प्राप्त करता है।
तीर्थ स्थित मन्दिर के गर्भगृह में शिवलिंग प्रतिष्ठित है। गर्भगृह की पश्चिमी भित्ति पर गन्धमादन पर्वत को उठाते हुए हनुमान का चित्र उत्कीर्ण है। शिवलिंग के पास ही नन्दी व गणेश की संगमरमर की आध्ुानिक प्रतिमाएं हैं। तीर्थ परिसर से ही प्रतिहार कालीन (9-10वी शती ई.) मन्दिर के भग्न स्तम्भ तथा इसी काल की मूर्तियों के मिलने से इस तीर्थ की प्राचीनता स्वयं सिद्ध हो जाती है।
According to folklore, Som deity, the moon god, attained health by worshipping Lord Shiva here. The villagers also call this tirtha Shasmaali. The presence of this tirtha in Aditi forest area shows the tradition of ancient planet worship. Antiquities of the proto-historic period are found in the tirtha premises, among which the images of Yaksha and Yaksha- Yakshini of the 2nd century BCE are noteworthy. Probably in the past, this tirtha must have been a part of the archaeological mound of Abhimanyupur.
Som Tirtha Abhimanyupur
One of the Som tirtha of ancient Kurukshetra