यह तीर्थ पिहोवा से लगभग 6 कि.मी. तथा कुरुक्षेत्र से लगभग 34 कि.मी. की दूरी पर सतौड़ा नामक ग्राम में सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है।
दैत्यों के गुरु महर्षि शुक्राचार्य से सम्बन्धित होने के कारण ही इस तीर्थ का नाम शुक्र तीर्थ पड़ा। महर्षि शुक्राचार्य भृगु ऋषि के पुत्र थे। इनका एक अन्य नाम उशना भी था। महर्षि शुक्र ही ग्रह बन कर तीनों लोकों के जीवन की रक्षा के लिए वृष्टि, अनावृष्टि, भय एवं अभय उत्पन्न करते हैं। इन्होंने मृतसंजीवनी विद्या के बल से मरे हुए दानवों को पुनजीर्वित किया था। इन्हीं की पुत्री देवयानी का विवाह सम्राट ययाति से हुआ था। कहा जाता है कि इन्हीं महर्षि शुक्राचार्य ने इस तीर्थ पर घौर तपस्या की थी।
ब्रह्मपुराण में इस तीर्थ का महत्त्व इस प्रकार वर्णित है:
शुक्रतीर्थमिति ख्यातं सर्वसिद्धिकरं नृणाम्।
सर्वपापप्रशमनं सर्वव्याधिविनाशनम्।
(ब्रह्मपुराण 95/1)
अर्थात् मनुष्यों के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला विख्यात शुक्र नामक तीर्थ है जो मनुष्य के द्वारा किए गए सभी पापों को दूर करता है एवं सभी रोगों को नष्ट करता है।
इस तीर्थ की पूर्व दिशा में सरस्वती नदी बहती है जिसके तट पर लाखौरी ईंटों से निर्मित एक प्राचीन घाट है। तीर्थ स्थित मन्दिर का प्रवेश द्वार मुगलकालीन शैली में निर्मित एक विशाल मेहराब से अलंकृत है। यहाँ स्थित शिव मन्दिर में एक मण्डप और एक गर्भगृह है। नन्दी मण्डप भित्तिचित्रों से सुशोभित है जिसकी भित्तियों में ऋद्धि एवं सिद्धि के मध्य में गणेश, भैरव, गोपियों के बीच कृष्ण एवं भगवान विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति जैसे प्रसंगोे का चित्रित किया गया है।