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लोककथाओं के अनुसार राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय को गंभीर त्वचा रोग से यहीं मुक्ति मिली थी। यहां का सरोवर सिद्ध जोहड़ी के नाम से प्रसिद्ध है जिसका पानी चर्म रोगों के लिए आज भी चमत्कारी माना जाता है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान घायल योद्धाओं के साथ-साथ युद्ध में काम आने वाले पशुओं का उपचार इस सरोवर के जल से किया जाता था। तीर्थ स्थित बाबा देवी दास के समाधि मन्दिर से यहां की ऋषि परंपरा का पता चलता है। तीर्थों परिवेश से उत्तर-हड़प्पा से लेकर प्रारंभिक ऐतिहासिक काल तक के पुरावशेष यहां की सांस्कृतिक निरंतरता को दर्शाते हैं।

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