Kurukshetra Development Board

सर्पदमन नामक यह तीर्थ जींद से लगभग 35 कि.मी दूर सफीदों नगर में स्थित है। इस तीर्थ से सम्बन्धित कथा महाभारत के आदि पर्व में आस्तीक पर्व के अन्तर्गत संक्षेपतः इस प्रकार है कि द्वापर युग की समाप्ति पर एवं कलियुग के प्रारम्भिक काल में महाराज परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से हुई। अपने पिता की मृत्यु का बदला तक्षक से लेने के उद्देश्य से परीक्षित के पुत्र महाराजा जनमेजय ने सम्पूर्ण नागजाति को नष्ट करने के लिए ऋषियों एवं ब्राह्मणों के परामर्श से इस स्थान पर सर्पदमन नामक यज्ञ करवया। मन्त्रों के चमत्कारिक प्रभाव से बड़े-बड़े शक्तिशाली सर्प यज्ञकुण्ड में आकर गिरने लगे। सम्पूर्ण वातावरण विषैला हो उठा, तब अपनी मृत्यु के भय से भयभीत हुआ तक्षक इन्द्र की शरण में गया। पहले तो इन्द्र ने तक्षक को निर्भय रहने को कहा, लेकिन जब मंत्रों के प्रभाव से स्वयं इन्द्र तक्षक सहित यज्ञकुण्ड में गिरने ही वाले थे कि जरत्कारू ऋषि के पुत्र आस्तीक के कहने पर यज्ञ रोक दिया गया। सर्पदमन यज्ञ सम्पन्न होने से ही इस तीर्थ का नाम सर्पदमन पड़ा।
इस तीर्थ पर एक प्राचीन सरोवर है जिसमें नागर शैली में निर्मित शिव, कृष्ण और शक्ति के उत्तर मध्यकालीन मन्दिर हैं जिनका निर्माण महाराजा जींद द्वारा करवाया गया था। इस तीर्थ को नागक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। जनसाधारण में ऐसा विश्वास पाया जाता है कि इस सरोवर में स्नान करने पर मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है।