सरक नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 4 कि.मी. दूर कैथल हिसार मार्ग से लगभग 1 किलोमीटर पूर्व में शेरगढ़ गांव में स्थित है। शेरगढ़ में स्थित इस तीर्थ का महाभारत एवं वामन पुराण दोनों में ही वर्णन उपलब्ध होता है। महाभारत के अनुसार इस तीर्थ में तीन करोड़ तीर्थ विद्यमान हैं। महाभारत में इस तीर्थ का महत्त्व इस प्रकार वर्णित है:
ततो गच्छेत् राजेन्द्र सरकं लोक विश्रुतम्।
कृष्णपक्षे चतुर्दश्यांभिगम्य वृषध्वजम्।
लभेत् सर्वकामान् हि स्वर्गलोकं च गच्छति।
तिस्रः कोट्यस्तु तीर्थानां सरके कुरुनन्दन।
(महाभारत, वन पर्व, 75-76)
अर्थात् हे राजेन्द्र तत्पश्चात् लोक प्रसिद्ध सरक नामक तीर्थ में जाना चाहिए जहां कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को वृषध्वज (भगवान शंकर) का दर्शन करके व्यक्ति की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं एवं वह स्वर्गलोक को जाता है। वामन पुराण में भी इस तीर्थ सम्बन्धी वर्णन महाभारत में दिए गए वर्णन से बहुत अधिक साम्य रखता है। अन्तर मात्र इतना ही है कि जहां महाभारत में इस तीर्थ को लोकविश्रुत कहा गया है वहीं वामन पुराण में इसे त्रिलोक में दुर्लभ बताया गया है:
ततो गच्छेत् सरकं त्रैलोकस्यपि दुर्लभम्।
कृष्णपक्षे चतुर्दश्यां दृष्ट्वा देवं महेश्वरम्।
लभते सर्वकामांश्च शिवलोकं स गच्छति।
तिस्रः कोट्यस्तु तीर्थानां सरके द्विजसत्तमाः।
(वामन पुराण 36/20-21)
महाभारत तथा वामन पुराण दोनांे में ही यह वर्णन भी है कि यहाँ सर के मध्य कूप में रुद्रकोटि स्थित है। वामन पुराण में वर्णित है कि उस सर में स्नान कर रुद्रकोटि का स्मरण करने वाले व्यक्ति के द्वारा निःसन्देह रुद्रकोटि पूजित हो जाते हैं तथा रुद्रों के प्रसाद से वह समस्त दोषों से छूट कर इन्द्रिय सम्बन्धी ज्ञान से परिपूर्ण होकर परमपद को प्राप्त करता है।