Kurukshetra Development Board

सन्निहित नामक यह तीर्थ जींद से लगभग 11 कि.मी. दूर जींद-हांसी मार्ग पर रामराय ग्राम में स्थित है। कहा जाता है कि प्रत्येक मास की अमावस्या को पृथ्वी के समस्त तीर्थ यहाँ एकत्रित होते हैं। तीर्थों का संगम होने से ही इस तीर्थ का नाम सन्निहित पड़ा।
इस तीर्थ का नामोल्लेख एवं महत्त्व वामन पुराण तथा महाभारत में विस्तार से वर्णित है। इस तीर्थ में सूर्यग्रहण के अवसर पर दान पुण्य करने का विशेष महत्त्व है।
भागवत पुराण में वर्णन है कि एक बार सूर्यग्रहण के अवसर पर विभिन्न स्थानों से राजा लोग, द्वारिका से श्रीकृष्ण एवं बलराम समस्त प्रमुख यादवों सहित समन्तपंचक नामक उस क्षेत्र में पहुँचे जहाँ शस्त्रधारी भृगुवंशीय महर्षि परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करते हुए उनके रक्त से पाँच सरोवर बनाए थे। समन्तपंचक नामक इस क्षेत्र में सूर्यग्रहण के पर्व पर सन्निहित तीर्थ में व्रत एवं स्नानादि करके श्रीकृष्ण, बलराम तथा अन्य प्रमुख यादवों ने पुष्प, स्वर्ण आभूषणों एवं मालाओं आदि से सुसज्जित गौएं ब्राह्मणों को दान में दी।
प्रचलित विश्वास के अनुसार प्राचीन सन्निहित सरोवर यहाँ रामह्रद में है, लेकिन बाद में इस सरोवर की मिट्टी से कुरुक्षेत्र में सन्निहित तीर्थ को बनाया गया। महाभारत में इस तीर्थ के महत्त्व के विषय में लिखा है कि सूर्यग्रहण के अवसर पर इस तीर्थ का स्पर्श मात्र कर लेने से सैंकड़ों अश्वमेध यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है।

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