Kurukshetra Development Board

सन्निहित सरोवर कुरुक्षेत्र

सूर्य पूजा का एक प्रमुख केन्द्र

सन्निहित तीर्थ की गणना कुरुक्षेत्र के प्राचीन एवं पवित्र तीर्थों में की जाती है। वामन पुराण के अनुसार यह तीर्थ रन्तुक से लेकर ओजस तक, पावन से चतुर्मुख तक विस्तृत था।
रन्तुकादौजसं यावत् पावनाच्च चतुर्मुखम्।
सरः सन्निहितं प्रोक्तं ब्रह्मणा पूर्वमेव तु।
(वामन पुराण, 1/5)
शनैः शनैः इसके आकार में परिवर्तन होता रहा और द्वापर तथा कलियुग में इसका प्रमाण विश्वेश्वर से अस्थिपुर तक तथा कन्या जरद्गवी से ओघवती तक सीमित हो गया। इस तीर्थ के पास भगवान शंकर ने लिंग की स्थापना की थी।
इस तीर्थ में अमावस्या के दिन सूर्यग्रहण के समय जो अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता है उसे हजारों अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है और एक ब्राह्मण को श्रद्धा पूर्वक भोजन कराने से करोडा़ंे व्यक्तियों के भोजन कराने का फल मिलता है।
अमावस्यां तथा चैव राहुग्रस्ते दिवाकरे।
यः श्राद्धं कुरुते मत्र्यस्तस्य पुण्यपफलं श्रृणु।
अश्वमेधसहस्रस्य सम्यगिष्टस्य यत्फलम्।
स्नातेव तदाप्नोति कृत्वा श्राद्धं च मानवः।।
(पद्म पुराण, आ. खं. 27/82-83)
पुराणों के अनुसार अमावस्या के अवसर पर पृथ्वी पटल पर स्थित सभी तीर्थ यहाँ एकत्र हो जाते हैं। इसीलिए इसे सन्निहित तीर्थ का नाम दिया गया। इस तीर्थ पर पूर्वजों हेतु पिण्ड-दान एवं श्राद्ध की प्राचीन परम्परा रहीं है। देश-विदेश के अनेक भागों से आए श्रद्धालु अपने पूर्वजों के निमित्त इस तीर्थ पर श्राद्ध एवं पिण्ड दान करते हैं जिसका उल्लेख तीर्थ पुरोहितों की बहियों में मिलता है।
कहा जाता है कि इसी तीर्थ के तट पर महर्षि दधीचि ने इन्द्र की याचना पर देव कार्य हेतु अपनी अस्थियों का दान किया था जिनसे निर्मित वज्र अस्त्र द्वारा इन्द्र ने वृत्रासुर का वध किया था। भागवत पुराण के अनुसार खग्रास सूर्यग्रहण के समय द्वारका से पहुँचेे श्रीकृष्ण की भेंट गोकुल से पहुँचेे नन्द, यशोदा तथा गोप-गोपिकाओं से हुई थी। श्रीकृष्ण ने विरह व्यथा से पीड़ित गोपियों को आत्मज्ञान की दीक्षा दी थी ।
तीर्थ परिसर में स्थापित ब्रिटिश कालीन अभिलेखों से इस सरोवर की पवित्रता एवं महत्ता का पता लगता है। तीर्थ परिसर में सूर्य नारायण, ध्रुवनारायण, लक्ष्मी-नारायण एवं दुःख भंजन महादेव मन्दिर स्थापित हैं। तीर्थ के पास में ही नाभा राजपरिवार द्वारा निर्मित नाभा हाऊस है जिसका प्रयोग राज परिवार द्वारा कुरुक्षेत्र भ्रमण के अवसर पर किया जाता था।

Sannihit Sarovar, kurukshetra

According to the Puranas, on the occasion of Amavasya, all waters of all the trithas located on the earth gather here. For this reason this tirtha has been named as Sannihit. There is an ancient tradition of offering pind- daan and shraddha for forefathers here at this tirtha. According to the Bhagavata Puran, during a total solar eclipse, Krishna who had come here from Dwarka and met Nanda, Yashoda and other cow-herds who had come here from the region of Gokul and Vrindavan (Mathura).