Kurukshetra Development Board

पुष्कर तीर्थ/कपिल यक्ष नामक यह तीर्थ जींद-हांसी मार्ग पर जींद से 14 कि.मी. दूर पोंकरी खेड़ी ग्राम के पश्चिम में स्थित है। इस तीर्थ का उल्लेख वामन पुराण, पद्म पुराण तथा महाभारत में मिलता है।
वामन पुराण में इस तीर्थ के निर्माता महर्षि परशुराम को बताया गया है जिसका महत्त्व वामन पुराण में इस प्रकार वर्णित है
पुष्करं च ततो गत्वा अभ्यच्र्य पितृदेवताः।
जामदग्न्येन रामेण आहृतं तन्महात्मना।।
कृतकृत्यो भवेद् राजा अश्वमेधं च विन्दति।
(वामन पुराण 34/41,42)
अर्थात् महर्षि परशुराम द्वारा निर्मित पुष्कर तीर्थ में जाने से मनुष्य के सम्पूर्ण मनोरथ सफल हो जाते हैं तथा यदि कोई राजा इस तीर्थ का सेवन करता है तो उसे अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है। कार्तिक की पूर्णिमा को जो मनुष्य इस तीर्थ में कन्या का दान करता है, देवता उस पर प्रसन्न होकर उसे अभिलषित वर प्रदान करते हैं।
दन्त कथाओं के अनुसार महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका नित्य पुष्कर तीर्थ के जल से स्नान करके ऋषि के लिए जल लाती थी। एक बार जब रेणुका पुष्कर तीर्थ से जल ला रही थी तब सहस्रबाहु ने उनकी मटकी को तीर मारकर तोड़ दिया। देरी से पहुंचने पर रेणुका ने जमदग्नि ऋषि को देरी का कारण बताया। ऋषि ने कहा कि अगर यह सत्य है तो जिस स्थान पर पानी की मटकी टूटी वहीं पुष्कर तीर्थ बन जायेगा। तभी से यहां पर पुष्कर तीर्थ बन गया।
महाभारत के अनुसार पुष्करों के संगम इस तीर्थ में स्नान करने वाला तथा पितरों की अर्चना करने वाला व्यक्ति अश्वमेघ यज्ञ के फल को प्राप्त करता है।
महाभारत तथा वामन पुराण में कुरुक्षेत्र की सीमा के चार द्वारपाल तरन्तुक, अरन्तुक, रामह्रद (कपिल) तथा मचक्रुक नामक चार यक्ष किंचित नाम परिवर्तन के साथ बताए हैं। इन्ही चार यक्षों में से यह तीर्थ कपिल यक्ष को समर्पित है। वामन पुराण के अनुसार इस तीर्थ में कपिल नामक महायक्ष स्वयं द्वारपाल के रूप में स्थित है। वामन पुराण के अनुसार् इस तीर्थ में द्वारपाल के रूप में स्थित कपिल नामक महायक्ष पापियों के मार्ग में विघ्न डालकर उन्हें दुर्गति प्रदान करते है। महायक्षी उदूखलमेखला नाम वाली उनकी पत्नी भी नित्यप्रति दुन्दुभि बजाते हुए वहाँ भ्रमण करती रहती है। महाभारत में वर्णित यक्षों में रामह्रद केवल स्थान का सूचक है। रामह्रद का शाब्दिक अभिप्राय परशुराम द्वारा निर्मित सरोवर है। सम्भवतः वामन पुराण में वर्णित पुष्कर तीर्थ महाभारत में वर्णित रामह्रद के ही विस्तार क्षेत्र में स्थित रहा होगा जहाँ कपिल यक्ष द्वारपाल के रूप में स्थित है।
इस तीर्थ पर हर मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मेला लगता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *