Kurukshetra Development Board

प्राची तीर्थ पिहोवा

पूर्व वाहिनी सरस्वती के तट का प्रमुख तीर्थ

प्राची नामक यह तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 31 कि.मी. की दूरी पर पिहोवा में सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। कुरुक्षेत्र भूमि के इस तीर्थ में सरस्वती नदी पूर्व दिशा की ओर बहती है। इसी से यह तीर्थ प्राची तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ। वामन पुराण में इस तीर्थ का नाम एवं महत्त्व दोनों ही स्पष्टतया वर्णित है। वामन पुराण में इस तीर्थ का वर्णन दुर्गा तीर्थ एवं सरस्वती कूप के पश्चात् उपलब्ध होता है:
स्नात्वा शुद्धिमवाप्नोति यत्र प्राची सरस्वती।
देवमार्ग प्रविष्टा च देवमार्गेण निःसृता।
प्राची सरस्वती पुण्या अपि दुष्कृतकर्मणां।
त्रिरात्रं च वसिष्यन्ति प्राचीं प्राप्य सरस्वतीम्।
(वामन पुराण 42.19-20)
अर्थात् पूर्व दिशा की ओर बहने वाली सरस्वती देवमार्ग में प्रविष्ट होकर देवमार्ग से ही निकली हुई है। यह पूर्ववाहिनी अर्थात् प्राची सरस्वती दुष्कर्मियों का भी उद्धार कर उन्हें पुण्य देने वाली है। जो मनुष्य प्राची सरस्वती के निकट जाकर तीन रात तक उपवास करता है उसे त्रिविध ताप आधिभौतिक, आधिदैहिक, आधिदैविक में से कोई ताप पीड़ित नहीं करता।
इसी पुराण में इस तीर्थ के महत्त्व के विस्तार में आगे लिखा है कि नर और नारायण, ब्रह्मा, स्थाणु, सूर्य एवं इन्द्र सहित सभी देवता प्राची दिशा का सेवन करते हैं। जो मानव प्राची सरस्वती में श्राद्ध करेंगे उनके लिए इस लोक एवं परलोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं होगा। अतः श्रद्धालु पुरुष को चाहिए कि वह सदैव प्राची सरस्वती का सेवन करे विशेषतः पंचमी के दिन। पंचमी की तिथि को प्राची सरस्वती का सेवन करने वाला मनुष्य धन एवं वैभव सम्पन्न होता है।
यहाँ सरस्वती के प्राचीन घाट के किनारे उत्तर मध्यकालीन तीन मन्दिर स्थित हैं जिनमें से एक मन्दिर से बड़ी संख्या में प्रतिहार कालीन (9-10वीं शती) मूर्तियाँ मिली हैं। इनसे प्राचीन काल में इस तीर्थ की धार्मिक एवं साँस्कृतिक महत्ता का पता लगता है। कई पुराविदों का मानना है कि वर्तमान मन्दिर सम्भवतः उन्हीं तीन प्राचीन मन्दिरों के ऊपर बनाए गए होंगे जिनका निर्माण प्रतिहार शासकों के अधीनस्थ तीन तोमर सामंत भाईयों पूर्णराज, देवराज और गोग्ग ने किया था। इन मन्दिरों के निर्माण की पुष्टि प्रतिहार सम्राट महेन्द्र पाल के अभिलेख से होती है।

Prachi Tirtha Pehowa

Tirtha located on east ward flowing Saraswati

At this tirtha of Kurukshetra region, River Saraswati flows towards the east, due to which it is famous as Prachi tirtha. According to the Puranas, nothing remains attainable for one either in this world or in other world who performs Shradha at this tirtha. Here, on the bank of River Saraswati, three temples of the Late medieval period can exist. A large number of sculptures of Pratihara period (9th-10th century CE) can be seen in one of these temples. This shows the religious and cultural importance of this tirtha.