Pavanhad Tirth, Pabnava

Pavanhad Tirth, Pabnava

पवनह्रद नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 27 कि.मी. दूर पबनावा नामक ग्राम में स्थित है। कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि में पवन देव से सम्बन्ध्ति एकमात्र तीर्थ होने से इसकी महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है।
पवन देवता से सम्बन्धित होने के कारण ही इस तीर्थ का नाम पवनह्रद पड़ा। इसी प्रकार पवनाब (पवन$आब) का शाब्दिक अर्थ भी पवन से सम्बन्धित जलाशय है। इसी कारण ऐसा प्रतीत होता है कि कालान्तर में इस ग्राम का नाम पवनाब से अपभ्रंश होकर पबनावा पड़ा है।
इस तीर्थ का वर्णन महाभारत, पद्म पुराण तथा वामनपुराण में मिलता है। जहाँ महाभारत में इसे पवन देवता से सम्बन्धित बताया गया है, वहीं वामन पुराण इसका सम्बन्ध महादेव एवं पवन देवता से स्थापित करता है जबकि पद्म पुराण में इसका सम्बन्ध महर्षि दधीचि से जोड़ा गया है।
महाभारत में इस तीर्थ का महत्त्व इस प्रकार है:
पवनस्यह्रदेस्नात्वा मरुतां तीर्थमुत्तमम्।
तत्र स्नात्वा नरव्याघ्र विष्णु लोके महीयते।।
(महाभारत, वन पर्व 83/104-105)
अर्थात् इस पवनह्रद नामक तीर्थ में स्नान करने वाला व्यक्ति विष्णुलोक में पूजित एवं सम्मानित होता है। वामन पुराण एवं पद्म पुराण के अनुसार समस्त 49 मरुत तीर्थों में उत्तम पवनह्रद नामक तीर्थ में स्नान करने पर व्यक्ति वायुलोक में श्रेष्ठ पद का अधिकारी बनता है। वामन पुराण में इसका महत्त्व इस प्रकार वर्णित है:
पवनस्यह्रदे स्नात्वा दृष्ट्वा देवं महेश्वरम्।
विमुक्तः कलुषैः सर्वैः शैवं पदमवाप्नुयात्।
(वामन पुराण 37/1)
अर्थात् इस तीर्थ में स्नान करके एवं भगवान महेश्वर का दर्शन करके मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर शैव पद को प्राप्त करता है। पौराणिक आख्यान के अनुसार यह वही विशेष सरोवर है जहां पवन देव पुत्रशोक से संतप्त होकर विलीन हो गए थे, तत्पश्चात् ब्रह्मा जी के साथ सभी देवताओं के द्वारा की गई विभिन्न स्तुतियों से प्रसन्न होकर वे पुनः आविर्भूत हुए।
वर्तमान में सरोवर के पश्चिमी घाट के समीप पवन देवता का एक आधुनिक मन्दिर है जिसमें पवन देवता की प्रतिमा के साथ उनके वाहन हिरण का भी दिखाया गया है। तीर्थ स्थित बांके बिहारी (श्रीकृष्ण) का एक उत्तर मध्यकालीन मन्दिर भी है। जिसका निर्माण लाखौरी ईंटो से हुआ है। इस मन्दिर में मण्डप, अन्तराल व गर्भगृह बने हैं। इस प्रकार की मन्दिर योजना सम्पूर्ण 48 कोस में अत्यन्त दुर्लभ है। मन्दिर की भित्तियों पर रासलीला, गीतोपदेश तथा रावण वध आदि प्रसंगों का मनोहारी चित्रण किया गया है। इस मन्दिर के अन्तराल के प्रवेशद्वार की भित्तियों पर जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा का चित्रण विशेष रूप से उल्लेखनीय है जो कि हरियाणवी लोक चित्र कला का उत्कृष्ट नमूना है।

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