इस तीर्थ का नामकर्ण भगवान शिव के एक नाम निराकार पर पड़ा है। लौकिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत के युद्ध के दौरान महिलाएं यहां स्नान करती थी। तीर्थ पर मध्यकालीन महिला स्नान कक्षों के साथ पुरुष घाट भी बने हैं। तीर्थ परिसर से मध्यकालीन मृदभाण्ड मिले हैं जब कि तीर्थ से लगभग एक कि.मी. उत्तर पूर्व में उत्तर-हड़प्पा काल से लेकर प्रारंभिक ऐतिहासिक काल तक के पुरावशेष मिलते हैं। यह सभी प्रमाण यहां की सांस्कृतिक निरंतरता को दर्शाते हैं। पूर्व में यहां श्रावण एवं कार्तिक स्नान की परम्परा रही है।