नैमिष नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 17 कि.मी. दूर कैथल-पिहोवा मार्ग पर नौच ग्राम में स्थित है। महाभारत के आदि पर्व में यह उल्लेख है कि नैमिषारण्य में ऋषियों की प्रेरणा से सौति ने महाभारत की सम्पूर्ण कथा सुनाई थी। महाभारत काल में इस का महत्त्व इतना अधिक था कि पृथ्वी के समस्त तीर्थों को यहाँ विद्यमान समझा जाता था।
महाभारत वन पर्व में नैमिष कुंज नामक एक प्राचीन तीर्थ का वर्णन है जिसका निर्माण नैमिषारण्य में निवास करने वाले मुनियों ने किया था:
ततो नैमिषं कुंजं च समासाद्य कुरुद्वह।
ऋषयः किल राजेन्द्र नैमिषेयास्तपस्विनः।
तीर्थयात्रां पुरस्कृत्य कुरुक्षेत्रं गताः पुरा।
ततः कुंजं सरस्वत्याः कृतो भरतसत्तम।
(महाभारत, वन पर्व 83/109-110)
उक्त विवरण से स्पष्ट है कि नैमिषारण्य के निवासी ऋषियों ने अपनी तीर्थयात्रा के दौरान कुरुक्षेत्र आने पर सरस्वती के तट पर एक कुंज का निर्माण किया जो उन सब के लिए आह्लादकारी एवं मनोहारी विश्राम स्थली था।
महाभारत वन पर्व के 84वें अध्याय में नैमिष तीर्थ के महत्त्व का बड़ा ही विस्तारपूर्वक वर्णन है जिसके अनुसार नैमिष तीर्थ सिद्धों के द्वारा सेवित एवं पुण्यमयी तीर्थ है जहाँ देवताओं के साथ ब्रह्मा नित्य निवास करते हैं। नैमिष मंे प्रवेश करने वाले मनुष्य के आधे पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। इस तीर्थ में उपवासपूर्वक प्राण त्यागने वाला व्यक्ति समस्त पुण्यलोकों में आनन्द का अनुभव करता है। नैमिष तीर्थ नित्य पवित्र और पुण्यजनक है।
तीर्थ के पूर्व में लाखौरी ईंटो से निर्मित सरोवर है। तीर्थ स्थित मन्दिर की आन्तरिक भित्तियाँ चित्रों से सुसज्जित हैं जिनमें पैरों से हाथी दबाए एवं एक हाथी को काँख में लिए हुए भीमसेन, किले के सामने लड़ाई का दृश्य, माला जपता हुआ बालक, वृषभ के साथ शिव पार्वती, रामसीता की सेवा में हनुमान, परशुराम, वराह, मत्स्यावतार, शंखासुर वध, कालनेमि वध, गंधमार्दन पर्वत को हाथ में उठाए हुए हनुमान, मोदक पात्र लिए हुए गणेश, शेषशायी विष्णु तथा नृसिंहावतार आदि प्रमुख हैं।