मकुटेश्वर नामक यह कैथल से लगभग 32 कि.मी. दूर मटोर ग्राम के मध्य में स्थित है।
प्रचलित किंवदन्ती इस तीर्थ का सम्बन्ध महर्षि मार्कण्डेय से जोड़ती है जिसके अनुसार महर्षि मार्कण्डेय का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। विभिन्न पुराणों में मार्कण्डेय ऋषि एवं मार्कण्डेय तीर्थ दोनों ही का वर्णन मिलता है।
मार्कण्डेय के जन्म के विषय में यह पौराणिक कथा है कि इनके पिता मृकण्डु के दीर्घ काल तक कोई पुत्र न हुआ तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए दीर्घ काल तक कठोर तप किया। अन्ततः प्रसन्न हुए शिव ने इन्हें एक गुणवान, यशस्वी एवं मनस्वी परन्तु अल्पायु वाले पुत्र के पिता होने का वर दिया। तब उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई जो मार्कण्डेय कहलाए। शैशवावस्था में ही उन्होंने सम्पूर्ण विद्याओं में निपुण्ता प्राप्त की। शिव की कृपा से इन्हें 16 वर्ष की आयु का वरदान मिला था। एक बार अपने माता-पिता को रोता हुआ देखकर तथा उनके दुख का कारण स्वयं को समझ कर इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु उग्र तप करना प्रारम्भ कर दिया। अन्ततः इनकी मृत्यु का दिन आने पर यम ने अपने दूतों को इन्हें लाने के लिए भेजा लेकिन यम के दूत इनके तपोबल के प्रभाव से इनके समीप न जा सके। विवश होकर यम स्वयं इन्हें लेने आए। उस समय मार्कण्डेय भक्तिभाव से विह्वल होकर उस शिवलिंग से लिपट कर अपने जीवनरक्षा की प्रार्थना करने लगे। यम ने शिवलिंग व मार्कण्डेय को बाँधने के लिए एक पाशा फैंका। उसी समय भगवान शिव स्वयं उस लिंग से उत्पन्न हुए तथा उन्होंने यम को मार गिराया। पुनश्च देवताओं द्वारा आग्रह किए जाने पर भगवान शिव ने यम को पुनः जीवन प्रदान किया। मृत्यु पर विजय से ही शिव मृत्युंजय नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
इस तीर्थ पर सूर्यग्रहण के अवसर पर लोग दूर दूर से स्नान के लिए पहुँचते हैं तथा यहाँ रहकर वे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
तीर्थ सरोवर के पश्चिम में एक उत्तर मध्यकालीन हवेलीनुमा भवन है जिसकी बाह्य भित्तियों पर सुन्दर वानस्पतिक अलंकरण के साथ-साथ धार्मिक प्रसंगों का भी चित्रण है।