मातृ तीर्थ नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 19 कि.मी. की दूरी पर ग्राम रसूलपुर के पूर्व में स्थित है। इस तीर्थ का नामोल्लेख महाभारत, ब्रह्म पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण तथा कूर्म पुराण में मिलता है। ब्रह्म पुराण की कथा के अनुसार देवासुर संग्राम में पराजित देवताओं ने भगवान शंकर की शरण ली। उनकी स्तुतियों से प्रसन्न हुए भगवान शिव ने देवश्रेष्ठों से अपना अभिलषित बताने को कहा जिससे वे उन्हें उनका अभीष्ट प्रदान कर सकें। शिव के ऐसा पूछे जाने पर देवताओं ने देवासुर संग्राम में अपनी पराजय के विषय में उन्हें बताया तथा साथ ही उनसे यह प्रार्थना की कि भगवान स्वयं उनके रक्षक बनना स्वीकार करें। देवताओं की प्रार्थना को स्वीकार कर भगवान स्वयं दानवों के साथ युद्ध करने पहुँचे। युद्ध के श्रम से शिव के ललाट से स्वेदकण गिरने लगे जिनसे शिव के आकार की मातृकाएं उत्पन्न हुईं। वे रौद्र रूप धारण कर असुरों का विनाश करने लगीं। उनके इस अत्यन्त भयंकर रूप को देख भयभीत हुए दानव मेरु पृष्ठ को त्याग कर पृथ्वी पर चले आए। मातृकाएं भी उनका भीषण संहार करते हुए पृथ्वी पर चली आई। उन माताओं ने भगवान शिव से कहा कि वे सब दानवों को खाएंगी। उन माताओं ने पृथ्वी का भेदन कर रसातल में जाकर असुरों का संहार किया। पुनः वे ऐसे मार्ग से पृथ्वी पर स्थित देवों के समीप चली आई जहाँ माताओं की उत्पत्ति हुई थी। जहाँ जहाँ रसातल को जाने वाले विवर बने वे पृथक्-पृथक् एक एक मातृ तीर्थ कहलाए। देवों ने माताओं को शिवतुल्य पूजा व सम्मान प्राप्त होने का वरदान दिया। यह कह कर देवगण अदृश्य हो गए लेकिन माताएं वहीं रही। जहाँ-जहाँ माताएं रही वहीं-वहीं मातृ तीर्थ स्थापित हुए। इस तीर्थ का महत्त्व ब्रह्म पुराण में इस प्रकार वर्णित है:
यत्र यत्र स्थिता देव्यो मातृतीर्थंततो विदु:।
सुराणामपि सेव्यानि किं पुनर्मानुषादिभिः।।
तेषु स्नानमथो दानं पितृणां चैव तर्पणम्।
सर्वं तदक्षयं ज्ञेयं शिवस्य वचनं यथा।।
यस्त्विदं श्रृणुयान्नित्यं स्मरेदपि पठेत्तथा।
आख्यानं मातृतीर्थानामायुष्मानस सुखी भवेत्।।
(ब्रह्म पुराण 122/26-28)
अर्थात् ये मातृ तीर्थ देवों के लिए भी सेव्य हैं तो साधारण व्यक्तियों का तो कहना ही क्या। उन तीर्थों में किए गए स्नान, दान एवं पितृ तर्पण कर्म शिव के वरदान की तरह अक्षय होते हेैं। इन तीर्थांे का श्रवण, मनन एवं पठन करने वाला मनुष्य भी सम्पूर्ण सुखी व चिरंजीवी होता है।
वामन पुराण के अनुसार इस मातृ तीर्थ में भक्तिपूर्वक स्नान करने वाले व्यक्ति की सन्तति बढ़ती है एवं वह प्रचुर वैभव का स्वामी बनता है।