यह तीर्थ कुरुक्षेत्र पिहोवा मार्ग पर कुरुक्षेत्र से लगभग 23 कि.मी. दूर मुर्तजापुर नामक ग्राम के पूर्व में स्थित है।
इस तीर्थ का वर्णन महाभारत के अन्तर्गत मणिपुर नाम से मिलता है। निःसन्देह यही मणिपुर कालान्तर में मणिपूरक नाम से प्रसिद्ध हो गया होगा। महाभारत में वर्णित मणिपुर वस्तुतः धर्मज्ञ एवं धर्मनिष्ठ राजा चित्रवाहन की राजधानी थी। तीर्थ यात्रा करते समय एक बार अर्जुन के द्वारा वचन भंग किए जाने पर उसने प्रायश्चित स्वरूप वनवास को स्वीकार किया। अपने वनवास के समय विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते हुए अर्जुन मणिपुर नामक तीर्थ पर पहुँचे। इसी स्थान पर अर्जुन ने सम्राट चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा से विवाह किया तथा लगभग तीन वर्ष तक यहाँ निवास किया। इस सम्पूर्ण कथा का वर्णन महाभारत के आदिपर्व में उपलब्ध होता है।
महाभारत के अश्वमेध पर्व के अन्तर्गत यह वर्णन है कि जब धर्मराज युधिष्ठिर ने इन्द्रप्रस्थ में अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया तो अर्जुन अश्वमेधीय यज्ञ के अश्व की रक्षार्थ उसके साथ गये। अश्व का पीछा करते हुए अर्जुन का पुनः मणिपुर में आगमन हुआ तथा वहाँ अर्जुन का अपने ही पुत्र बभ्रुवाहन के साथ घोर संग्राम हुआ। लौकिक आख्यान इस तीर्थ का सम्बन्ध अश्वत्थामा से भी जोड़ते हैं। कहा जाता है कि इसी स्थान पर पाण्डवों ने अश्वत्थामा के माथे से जुड़ी मणि निकाली थी। तीर्थ स्थित गौरी शंकर एवं गणेश मन्दिर उत्तर मध्यकालीन शैली में निर्मित हंै जिनका शिखर लगभग गुम्बदाकार है। यह तीर्थ सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। तीर्थ के निकट ही बीबीपुर कलाँ नामक ग्राम से उत्तर हड़प्पा काल से लेकर मध्यकाल तक की संस्कृतियों के पुरातात्त्विक अवशेष मिलते हैं जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि प्राचीन काल में कभी इन संस्कृतियों का प्रसार यहाँ तक भी रहा