कोटिकूट नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 11 कि.मी दूर क्योड़क ग्राम में स्थित है।
क्योड़क नामक ग्राम में स्थित यह तीर्थ महाभारत एवं वामन पुराण में उल्लिखित कोटि तीर्थ ही है। इस तीर्थ का उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलता है। इस पुराण के अनुसार इस तीर्थ मंे करोड़ तीर्थ समाविष्ट हैं।
ब्रह्मपुराण में कोटिकूट तीर्थ के बारे में निम्न उल्लेख मिलता है:
सप्तर्षिकुण्डं च तथा तीर्थं देव्याः सुजम्बुकम्।
ईहास्पदं कोटिकूटं किन्दानं किंजपं तथा।।
(ब्रह्म पुराण 25/41)
ब्रह्म पुराण के 25 वें अध्याय में जहाँ सभी तीर्थों के नाम एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन है उसी के अन्तर्गत कोटिकूट तीर्थ का नामोल्लेख मिलता है।
इस तीर्थ के विषय में प्रचलित जनश्रुति के अनुसार महाभारत काल में कुन्ती के द्वारा आत्मग्लानि से युक्त होने पर एक ऋषि ने इनको प्रायश्चित स्वरूप एक करोड़ तीर्थों में स्नान करने का परामर्श दिया। तब कुन्ती ने यहाँ स्नान कर पाप से मुक्ति प्राप्त की। लोगों में ऐसा विश्वास पाया जाता है कि इस तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
तीर्थ सरोवर के पश्चिमी भाग में टीले के ऊपर एक दुमंजिला लाखौरी ईंटों से निर्मित उत्तर मध्यकालीन भवन है जिसकी छत बंगाली चाला प्रकार की है। पूरा गाँव प्राचीन टीले पर बसा हुआ है। पुरातात्त्विक सर्वेक्षण में यहाँ से धूसर चित्रित मृद्भाण्ड मिले हैं जिनका सम्बन्ध पुरातत्त्वविद महाभारत काल से जोड़ते है। इसके अतिरिक्त यहाँ से आद्य-ऐतिहासिक काल से लेकर मध्यकाल तक की संस्कृतियों के अवशेष भी मिलते है जो कि इस स्थल की प्राचीनता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं।