जमदग्नि नामक यह अति प्राचीन तीर्थ सफीदों-जींद मार्ग पर जींद से 18 कि.मी.दूर जामनी ग्राम में स्थित है। सम्भवतः कालान्तर में विकृत होते-होते जमदग्नि ही जामनी बन गया।
यह तीर्थ महर्षि च्वयन के प्रपौत्र ब्रह्मर्षि जमदग्नि से सम्बन्धित है। लोक प्रचलित धारणा के अनुसार जमदग्नि नामक इस तीर्थ में महर्षि जमदग्नि ने कठोर तपस्या की थी। एक बार हैहेयी नामक राक्षस ने उनकी तपस्या में विघ्न डाल कर ऋषि को अपमानित किया एवं उनके शिष्यों को मार डाला। दुखी हुए ऋषि ने अपने पुत्र परशुराम से हैहेयी राक्षस का वध करवाया।
इसी तीर्थ से सम्बन्धित कथा के अनुसार एक बार राजा सहस्रबाहु अपनी विशाल सेना के साथ महर्षि जमदग्नि के आश्रम पर आए। महर्षि ने अपनी कामधेनु से उन सबके सत्कारादि की भव्य व्यवस्था की। कामधेनु के इस सामथ्र्य को देखकर सहस्रबाहु ने उस धेनु को अपने साथ ले जाने की चेष्टा की। सहस्रबाहु की इस कुचेष्टा से को्रधित होकर महर्षि जमदग्नि ने उन पर आक्रमण कर दिया। क्रोधित हुए सहस्रबाहु ने बल प्रयोग से महर्षि का शिरोच्छेद कर डाला। अपने पिता की हत्या से क्रोधित हुए परशुराम ने राजा सहस्रबाहु की सम्पूर्ण नगरी को नष्ट भ्रष्ट कर दिया तथा समस्त क्षत्रिय जाति को समूल नष्ट करने के लिए अपनी प्रतिज्ञानुसार 21 बार क्षत्रियों का संहार किया।
इस तीर्थ की गणना 68 पवित्र धामों में की जाती है। यहाँ लोग पूरी आस्था से जमदग्नि ऋषि की पूजा-अर्चना करते हैं। नवविवाहित युगल मन्दिर में पूजा अर्चना कर अपने सुखी दाम्पत्य जीवन हेतु प्रार्थना करते हैं। तीर्थ परिसर से विगत कुछ वर्ष पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति की ईंटें प्राप्त हुई हैं। इससे भी इस तीर्थ की प्राचीनता स्वयंमेव सिद्ध हो जाती है।