यह तीर्थ ब्रह्म सरोवर से लगभग 6 कि.मी. दूर पिहोवा राजमार्ग पर सरस्वती नदी के प्राचीन तट पर स्थित है। श्रीमद्भगवद्गीता की जन्मस्थली ज्योतिसर कुरुक्षेत्र स्थित परम पावन स्थान है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध से पूर्व इसी स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का उपदेश दिया गया था। इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश देने के मध्य अपना विराटस्वरूप अर्जुन को दिखाया था। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिखाए गए इस विराट रूप का वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता के विश्वरूप दर्शन योग नामक अध्याय में वर्णित है।
कहा जाता है कि अपनी हिमालय यात्रा के समय आदि गुरु शंकराचार्य ने सर्वप्रथम इस स्थान को चिह्नित किया था। सन् 1850 में महाराजा काश्मीर द्वारा यहाँ पर एक शिव मन्दिर की स्थापना की गई थी। इसके पश्चात् सन् 1924 में महाराजा दरभंगा ने यहाँ पर गीता उपदेश के साक्षी वट वृक्ष के चारों ओर एक चबूतरे का निर्माण करवाया।
तीर्थ के इसी महत्त्व को दृष्टिगत रखते हुए सन 1967 में कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य द्वारा मुख्य चबूतरे के साथ गीता उपदेश रथ स्थापित करवाया गया तथा साथ ही चबूतरे के नीचे परिक्रमा पथ के साथ आदि गुरु शंकराचार्य का मन्दिर भी बनवाया गया। तीर्थ परिसर में निर्मित चबूतरे के नीचे रखे गए 9-10वीं शती ई. के मन्दिर के स्तम्भ के अवशेष से भी इस तीर्थ के ऐतिहासिक महत्त्व का पता चलता है। इसके अतिरिक्त पुरातत्त्ववेत्ताओं द्वारा तीर्थ परिसर से मिले मूर्ति फलकों में भगवान विष्णु की मूर्ति का उल्लेख किया गया है। इस विवरण से सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में इस तीर्थं में भगवान विष्णु का कोई भव्य मन्दिर स्थापित रहा होगा।
सरस्वती नदी के पावन तट पर स्थित इस तीर्थ के आस-पास धूसर चित्रित मृदभाण्डीय संस्कृति के अवशेष मिलते हंै जिसका सम्बन्ध कुछ पुरातत्त्वविद् महाभारत काल से जोड़ते हैं। तीर्थ के पश्चिम की ओर स्थित जोगनाखेड़ा नामक ग्राम के पुरातात्त्विक उत्खनन से उत्तर हड़प्पा कालीन एवं धूसर चित्रित मृदभाण्डीय संस्कृति के अवशेष मिले हैं। इन सभी प्रमाणों से इस तीर्थ की पुरातनता सिद्ध होती है।