Galav Tirth, Guldaira

Galav Tirth, Guldaira


गालव नामक यह तीर्थ पिहोवा से 11 कि.मी. तथा कुरुक्षेत्र से लगभग 41 कि.मी. गुलडैहरा नामक ग्राम में स्थित है जिसका सम्बन्ध महर्षि विश्वामित्र के पुत्र महर्षि गालव से रहा है। महर्षि गालव से सम्बन्धित होने के कारण ही तीर्थ का नाम भी गालव पड़ गया तथा ग्राम्य भाषा में लोग इसे गालिब तीर्थ के नाम से जानते हैं।
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार महर्षि गालव ने अपने पिता महर्षि विश्वामित्र से ही शिक्षा ग्रहण की। इनकी गुरु भक्ति से प्रसन्न होकर इनके गुरु विश्वामित्र ने विद्या समाप्त होने पर इनसे गुरु दक्षिणा लेना स्वीकार नहीं किया लेकिन गालव ऋषि के बार-बार आग्रह करने पर विश्वामित्र ने क्रोधित होकर इनसे 800 ऐसे अश्व लाने को कहा जिनका एक कान काला हो। गालव ऋषि इस अप्रत्याशित दक्षिणा को सुनकर बड़े दुखी हुए। तत्पचात् गरुड़ के परामर्श पर ये राजा ययाति के पास गए। महाराज ययाति ने अपनी पुत्री माध्वी को ऋषि की सहायतार्थ उनके साथ भेज दिया। माध्वी के सहयोग से भी ये तीन नरेशों के पास जाकर 600 अश्व ही जुटा पाए। संकट के क्षण में पक्षीराज गरुड़ पुनः उनके बचाव के लिए आए तथा उन्होंने गालव को परामर्श दिया कि वह शेष 200 अश्वों के स्थान पर माध्वी को ऋषि विश्वामित्र को सौंप दें ताकि उनकी गुरु दक्षिणा पूर्ण हो सके। गालव से उचित गुरु दक्षिणा पाकर प्रसन्न हुए विश्वामित्र ने उनको आशीर्वाद दिया।
यही गालव ऋषि अपनी उपस्थिति से देवराज इन्द्र तथा धर्मराज युधिष्ठिर की सभा की भी शोभा बढ़ाते थे, ऐसा उल्लेख महाभारत के सभापर्व में है। इन्हीं गालव ऋषि ने इस स्थान पर दीर्घ समय तक घोर तपस्या की थी इसी कारण यह तीर्थ ऋषि के नाम पर गालव तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ।

LOCATION

Quick Navigation