ब्रह्म सरोवर की गणना कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थों में होती है। यह तीर्थ ब्रह्मा से सम्बधित होने के कारण ब्रह्म सरोवर नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसे सृष्टि का आदि तीर्थ माना जाता है। महर्षि लोमहर्षण ने बह्मा, विष्णु व शिव सबको साक्षी मानकर इसका उल्लेख किया है:-
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थं विष्णुं च लक्ष्मी सहितं तथैव।
रुदं्र च देवं प्रणिपत्य मूध्र्ना तीर्थं वरं ब्रह्मसरः प्रवक्ष्ये।
(वामन पुराण 22/50)
आद्यं ब्रह्मसरः पुण्यं ततो रामह्रद स्मृतः।
इस श्लोक से ब्रह्म सरोवर का महत्त्व स्वमेव सिद्ध हो जाता है। इसका नाम पूर्व में ब्रह्मसर तथा बाद में रामह्रद हुआ।
वामन पुराण के अनुसार सृष्टि रचना का ध्यान करते हुए ब्रह्मा ने चारांे वर्णांे की रचना इसी स्थान पर की थी। इसी पुराण के अनुसार चतुर्दशी तथा चैत्रमास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को इस तीर्थ में स्नान व उपवास करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। महाभारत के अनुसार इस तीर्थ में स्नान करने वाला व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है और अपने कुल को पवित्र करता है। कहा जाता है कि वेदों में वर्णित राजा पुरुरवा तथा उर्वशी का विख्यात संवाद इसी सरोवर के तट पर हुआ था।
लौकिक आख्यानों के अनुसार इस सरोवर का सर्वप्रथम जीर्णोंद्धार राजा कुरु ने करवाया था। प्राचीन काल में इसे ब्रह्मा की उत्तरवेदि, ब्रह्मवेदि तथा समन्तपंचक भी कहा जाता था। सूर्यग्रहण के अवसर पर इस सरोवर में किया गया स्नान हजारों अश्वमेध यज्ञों के फल के समान माना जाता है।
यह सरोवर दो भागों में विभक्त है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के उपरान्त युधिष्ठिर ने दोनो भागों के मध्य स्थित भूमि में एक विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया था जोकि कालान्तर में नष्ट हो गया। मध्यकाल में मुस्लिम शासकों द्वारा इस भूमि में सैनिक छावनी का निर्माण करवाया गया था जो सरोवर में स्नान करने वाले तीर्थयात्रियों से जजिया कर वसूल करते थे। सन् 1567 के सूर्यग्रहण के अवसर पर मुगल सम्राट अकबर ने अपनी कुरुक्षेत्र यात्रा के समय यह कर समाप्त कर दिया था। पुनः औरंगजेब ने इस कर को जारी किया। अंततः 18वीं सदी के मध्य में मराठों द्वारा इस कर को समाप्त किया गया था। इसी स्थल पर प्राचीन द्रौपदी कूप निर्मित है जिसे चन्द्र कूप भी कहा जाता है। यह सरोवर एशिया का सबसे विशाल मानव निर्मित सरोवर है। इस सरोवर की विशालता को देखते हुए ही अकबर के दरबारी कवि अबुल फजल ने इसे लघु समुद्र की संज्ञा दी थी।
सरोवर के मध्य में सर्वेश्वर महादेव का मन्दिर शोभायमान है। जनश्रुति के अनुसार ब्रह्मा ने सर्वप्रथम इसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी। सरोवर के पश्चिमी तट पर एक प्राचीन बौद्ध स्तूप के अवशेष तथा आद्य ऐतिहासिक काल की संरचनाएं तथा पुरावशेष मिले हंै जोकि इस सरोवर की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हंै।