बह्मावर्त नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर प्रभावत ग्राम के पश्चिम में स्थित है।
कुरुक्षेत्र भूमि की 48 कोस की परिधि में स्थित ब्रह्मतीर्थों (ब्रह्मसर, ब्रह्मयोनि, ब्रह्मोदुम्बर, ब्रह्मावर्त) में इस तीर्थ का एक प्रमुख स्थान है। महाभारत एवं वामन पुराण दोनों में ही इस तीर्थ का महत्त्व वर्णित है। महाभारत में इस तीर्थ का महत्त्व इस प्रकार है।
ततोगच्छेत् राजेन्द्र ब्रह्मवर्तं नरोत्तमः।
ब्रह्मावर्ते नरः स्नात्वा ब्रह्मलोकमवाप्नुयात्।।
(महाभारत, वन पर्व 83/53-54)
अर्थात् हे राजन् ! तत्पश्चात् ब्रह्मावर्त नामक तीर्थ में जाना चाहिए जहाँ स्नान करने पर मनुष्य ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है।
वामन पुराण में इस तीर्थ का सेवन करने वाले मनुष्य को ब्रह्मज्ञानी होने का फल वर्णित है:
ब्रह्मावर्ते नरः स्नात्वा ब्रह्मज्ञानसमन्वितः।
भवेत नात्र संदेहः प्राणान् मुंचति स्वेच्छया।।
(वामन पुराण 35/36)
अर्थात् ब्रह्मावर्त नामक तीर्थ में स्नान करने पर व्यक्ति निःसन्देह ब्रह्मज्ञानी हो जाता है एवं वह अपनी इच्छा के अनुसार अपने प्राणों का परित्याग करता है ।
अग्नि पुराण में भी तीर्थ महात्म्य नामक अध्याय में जहाँ कुरुक्षेत्र के तीर्थों का वर्णन है वहाँ इस तीर्थ का नाम स्पष्टतया वर्णित है ।
गंगासरस्वतीसंगमं ब्रह्मावर्तमघार्दनम् ।
(अग्नि पुराण 109/17)
नारद पुराण में भी ऐसा वर्णन है कि ब्रह्मावर्त तीर्थ में स्नान करने पर मनुष्य ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार इस तीर्थ के महात्म्य के सम्बन्ध में वामन पुराण, नारद पुराण, मत्स्य एवं पद्म पुराण के मतों में पर्याप्त साम्य है।
सरस्वती नदी के किनारे स्थित यह तीर्थ कुरुक्षेत्र भूमि की 48 कोस की सीमा पर स्थित है।