यह तीर्थ पिहोवा से लगभग 15 कि.मी. तथा कुरुक्षेत्र से लगभग 42 कि.मी. किलोमीटर दूर थाणा नामक ग्राम में लगभग 115 एकड़ भूमि में विस्तृत है। ब्रह्मस्थान नामक यह तीर्थ कुरुक्षेत्र के तीर्थों में अपना प्रमुख स्थान रखता है। इस तीर्थ का वर्णन महाभारत के वन पर्व में किया गया है। ब्रह्मस्थान नामक इस तीर्थ का स्पष्ट नामोल्लेख एवं महत्त्व वन पर्व के 84 वें अध्याय में वर्णित है:
ततोगच्छेत्राजेन्द्र ब्रह्मस्थानमनुत्तमम्।
तत्राभिगम्यराजेन्द्र ब्रह्माणं पुरुषर्षभ।
राजसूयस्याश्वमेघाभ्यां फलंप्राप्नोति मानवः।
(महाभारत, वन पर्व 84/103-104)
अर्थात्, हे राजेन्द्र ! तत्पश्चात् मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ तीर्थ ब्रह्मस्थान को जाना चाहिए जो कि ब्रह्मा से सम्बन्ध्ति है। वहाँ जाने पर मनुष्य राजसूय एवं अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त करता है।इसी तीर्थ के महत्त्व को पुष्ट करता वन पर्व के 85 वंे अध्याय का निम्न श्लोक भी द्रष्टव्य है:
ब्रह्मस्थानं समासाद्यत्रिरात्रोपोषितो नरः।
गोसहस्र फलं विन्द्यात् स्वर्गलोकं च गच्छति।
(महाभारत, वन पर्व 85/35)
अर्थात् ब्रह्मस्थान नामक तीर्थ में तीन रात्रि निवास करने वाला मनुष्य सहस्र गऊओं के दान का फल प्राप्त करता है तथा स्वर्ग को जाता है।
इसी तीर्थ के पूर्वी तट पर बल्लीवट नामक महान वृक्ष का उल्लेख नृसिंह पुराण में मिलता है। नृसिंह पुराण में वर्णन है कि बल्लीवट में भगवान की ‘महायोग’ नामक मूर्ति का निवास है। इसी वृक्ष के नीचे महर्षि मार्कण्डेय ने महर्षि भृगु से महामृत्युंजय मंत्र की प्राप्ति की थी जिसका वर्णन नृसिंह पुराण के सातवें अध्याय में है।
इस तीर्थ से कुषाण एवं गुप्तकालीन ईटंे तथा मृदपात्र मिले हंै जिससे इस तीर्थ की प्राचीनता स्वयं सिद्ध हो जाती है।