यह तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 17 कि.मी. की दूरी पर भोर सैयदंा नामक ग्राम में स्थित है जिसका नाम कुरुवंशी राजा सोमदत के पुत्र एवं महाभारत युद्ध के प्रमुख कौरव पक्षीय योद्धा भूरिश्रवा पर पडा़ है। लोकोक्तियों के अनुसार इसी स्थान पर महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई महावीर सात्यकि द्वारा धोखे से भूरिश्रवा का वध किया गया था। भूरिश्रवा कौरव पक्ष के श्रेष्ठतम योद्धाओं में से एक थे जो असाधारण वीरता एवं साहस के लिए विख्यात थे। महाभारत युद्ध में उन्होंने कई बार पाण्डव सेनाओें को हराया था। उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान सात्यकि के दस पुत्रों को भी मारा था। महाभारत युद्ध के अवसर पर एक बार जब भूूरिश्रवा सात्यकि को मारने वाले थे तभी अुर्जन ने बाण वेधकर उनकी दाँयी भुजा काट डाली। भुजाहीन भूरिश्रवा जब ध्यान में बैठे हुए थे तो तभी सात्यकि ने अवसर पाकर उन्हंे मार डाला। अपनी मृत्यु के पश्चात् भूरिश्रवा विश्वदेवों मे सम्मिलित हो गए थे।
भगवान शिव के परम भक्त होने के कारण मृत्यु के पश्चात् भूरिश्रवा की आत्मा भगवान शिव में ही विलीन हो गई थी। इसीलिये तीर्थ स्थित मन्दिर भूरिश्रवेश्वर महादेव कहलाता है। तीर्थ सरोवर में वन विभाग, हरियाणा द्वारा मगरमच्छ विहार विकसित किया गया है। वर्तमान में तीर्थ के उत्तर में प्राचीन सरस्वती का एक पुरा प्रवाह मार्ग भी खोजा गया है। सरस्वती का यह पुरा प्रवाह मार्ग महाभारत एवं पुराणों में वर्णित साहित्यगत विवरणों की पुष्टि करता है।
इस तीर्थ में तीन मन्दिर स्थित हैं जिनमें भूतेश्वर महादेव मन्दिर उत्तर मध्यकालीन है। इस मन्दिर के गर्भगृह के सामने मण्डप है जिसका शिखर शंक्वाकार है। अष्टभुजा आधार से निर्मित गर्भगृह का शिखर गुम्बदाकार है। गर्भगृह की आन्तरिक भित्तियों में भित्ति चित्र बनाए गए हैं। सरोवर तीर्थ के उत्तर में स्थित है जिसमें दक्षिण की ओर दो घाटों का निर्माण हुआ है जिन्हें सरस्वती तथा गंगा घाटों के नाम से जाना जाता है। सरोवर में प्रचुर मात्रा में उगने वाले कमल इसकी शोभा को और अधिक बढ़ा देते हैं।