Kurukshetra Development Board

महानदी सरस्वती के तट पर स्थित यह तीर्थ पुराणों में अनरक तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। इसी तीर्थ का उल्लेख महाभारत एवं वामन पुराण दोनों में मिलता है। कहा जाता है कि इस तीर्थ के पूर्व में ब्रह्मा, दक्षिण में शिव पश्चिम में रुद्रपत्नी एवं उतर में भगवान विष्णु का वास हैं।
लौकिक आख्यान इस तीर्थ का सम्बन्ध भीष्म पितामह से जोड़ते हंै। कहा जाता है कि कौरवों की और से दस दिन तक महाभारत युद्ध लड़ने के पश्चात् अर्जुन के बाणों से घायल होकर इसी स्थल पर भीष्म पितामह बाणों की शरशैय्या पर लेटे रहे तथा सूर्य के उतरी गोलार्द्ध में आने के पश्चात् ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे। यहाँ पर बने कुण्ड को भीष्म कुण्ड कहा जाता है।
कुण्ड के निर्माण के सम्बन्ध मंे कहा जाता है कि रणभूमि में घायल होकर जब भीष्म पितामह बाणों की शरशैय्या पर लेटे थे तो अपनी प्यास बुझाने के लिए उन्होंने कौरवों-पाण्डवों को इशारा किया तो कौरव उनके लिए पात्रों में सुगन्धित पवित्र जल लेकर उपस्थित हुए लेकिन उन्होंने पात्रों में लाए जल को अस्वीकार कर दिया। अर्जुन भीष्म पितामह का संकेत समझ चुके थे इसलिये उन्होंने पार्जन्य अस्त्र भूमि में मारकर जल प्रकट किया। अर्जुन के बाणों से प्रकट हुई जलधारा से ही भीष्म पितामह ने अपनी प्यास बुझाई।
अविध्यत्पृथिवीं पार्थः पाश्र्वे भीष्मस्य दक्षिणे।
उत्पपात ततोधारा वारिणो विमल शुभा।
शतस्यामृतकल्पस्य दिव्यगन्धरसस्य च
अतर्पयत्ततः पार्थः शीतया जलधारया।
(महाभारत, भीष्म पर्व)
महाभारत युद्ध की समाप्ति पर हस्तिनापुर में राज्य सिंहासन ग्रहण करने के पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर युधिष्ठिर ने इसी स्थल पर आकर भीष्म पितामह से राजधर्म एव अनुशासन की शिक्षाएं ग्रहण की। महाभारत के अनुसार महात्मा भीष्म के श्रीमुख से उन उपदेशों को सुनने के लिए पाण्डवों के अतिरिक्त आसित, देवल, ब्यास जैसे महर्षि व अन्य ऋषिगण उपस्थित थे।
महात्मा भीष्म द्वारा प्रदत्त इन अपूर्व उपदेशों के संकलन के कारण ही महाभारत को समस्त भारतीय वांगमय में वह स्थान प्राप्त है जो इसे विश्व की अनमोल साहित्य निधि में स्थान दिलाता है। वास्तव में कुरुक्षेत्र भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निसृत गीता तथा भीष्म पितामह द्वारा दी गई ज्ञान धर्म एवं अनुशासन की शिक्षाएं इस भूमि को धन्य करती हैं।
यह तीर्थ सरस्वती के तट पर स्थित है। तीर्थ के आस-पास से उत्तर हड़प्पा कालीन एवं धूसर चित्रित मृदभाण्डीय संस्कृति के अवशेष मिलते हंै जिससे इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध हो जाती है।

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