Kurukshetra Development Board

आपगा तीर्थ दयालपुर

प्राचीन आपगा नदी पर स्थित मोक्ष तीर्थ

आपगा नामक यह तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर दयालपुर नामक ग्राम की सीमा पर स्थित है। वामन पुराण में कुरुक्षेत्र भूमि की नौ नदियों का उल्लेख है जिनमें सरस्वती, वैतरणी, मधुस्रवा, वासुनदी, कौशिकी, हिरण्यवती, गंगा, मन्दाकिनी, दृषद्वती के साथ आपगा का भी उल्लेख है। इन नौ नदियों में से सरस्वती के अतिरिक्त सभी को वर्षाकाल में बहने वाली बताया गया है:
सरस्वती नदी पुण्या तथा वैतरणी नदी ।
आपगा च महापुण्या गंगामन्दाकिनी नदी ।
मधुस्रवा वासुनदी कौशिकी पापनाशिनी ।
दृषद्वती महापुण्या तथा हिरण्वती नदी ।
वर्षाकालवहाः सर्वा वर्जयित्वा सरस्वतीम् ।
एतासामुदकं पुण्यं प्रावृष्ट्काले प्रकीर्तितम् ।
(वामन पुराण 34/6-8)
महाभारत एवं पौराणिक साहित्य में इस तीर्थ का महत्त्व वर्णित है। महाभारत के वनपर्व में कहा है कि आपगा तीर्थ में किसी ब्राह्मण को श्यामक का भोजन करवाना करोडो़ ब्राह्मणों के भोजन करवाने का फल देता है।
पुराणों के अनुसार भाद्रपद मास में विशेष रूप से कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मध्याह्न में इस तीर्थ पर पिण्डदान करने वाला व्यक्ति मुक्ति को प्राप्त करता है।
इस तीर्थ में एक वर्गाकार सरोवर है जिसका निर्माण लाखौरी ईंटों से हुआ है। तीर्थ के चारों कोनों पर चार अष्टभुजाकार एवं गुम्बदाकार शिखर युक्त उत्तर मध्यकालीन चार छतरियाँ बनी हुई हैं। तीर्थ के निकट ही कुरुक्षेत्र का प्रसिद्ध पुरातात्त्विक स्थल राजा कर्ण का टीला है जिसका सम्बन्ध स्थानीय लोग कर्ण से जोड़ते हंै। तीर्थ परिसर से कुछ ही दूरी पर स्थित मिर्जापुर के टीले की खुदाई से उत्तर हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष मिलेे हैं जिससे भी इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध होती है।

Aapga Tirtha Dayalpur

The salvation ensuring tirtha located on the bank of River Aapga

The Vaman Puran mentions nine rivers located in the land of Kurukshetra. Out of these nine rivers, accepts River Saraswati all were seasonal rivers. This tirtha is situated on one of these rivers named as River Aapga which followed between saraswati and Drishadvati as mentioned in the Rigveda. According to the Puranas, a person who offers Pind Daan at this tirtha in the month of Bhadrapad, especially on the Chaturdashi of Krishna Paksha at noon, attains salvation. Remains of the Late-Harappan culture have been found from Mirzapur mound near the tirtha.