गोभवन तीर्थ, नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 23 कि.मी. दूर गुहणा ग्राम में स्थित है।
गुहणा में स्थित इस तीर्थ का वर्णन महाभारत तथा पद्म पुराण दोनों में किंचित शब्द परिवर्तन के साथ मिलता है। महाभारत तथा पद्म पुराण में यह तीर्थ गवां भवन के नाम से उल्लिखित है। सम्भवतः महाभारत एवं पद्म पुराण में गवां भवन नाम से वर्णित तीर्थ ही वर्तमान में अपभं्रश होकर गोभवन के नाम से विख्यात हो गया होगा।
महाभारत में इस तीर्थ का महत्त्व इस प्रकार वर्णित है:
गवां भवनमासाद्य तीर्थसेवीयथाक्रमम्।
तत्राभिषेकं कुर्वाणो गोसहस्र फलं लभेत्।।
(महाभारत, वन पर्व 83/50)
अर्थात् तीर्थ सेवी मनुष्य को चाहिए कि वह गवांभवन तीर्थ में जाए। वहां पर स्नान करने वाले मनुष्य को गोसहस्र दान का फल प्राप्त होता है।
ब्रह्म पुराण में भी इस तीर्थ का स्पष्ट नामोल्लेख मिलता है:
लोकद्वारं पंचतीर्थं कपिलातीर्थमेव च।
सूर्यतीर्थं शंखिनी च गवां भवनमेव च।।
(ब्रह्म पुराण 25/38)
इस तीर्थ से सम्बन्धित प्रचलित जन-श्रुति के अनुसार यहाँ पर न्यालगिरि नामक एक महान तपस्वी थे जो तपश्चर्या के साथ-साथ गौ सेवा भी करते थे। एक बार उन्हीं सन्त के समक्ष तालाब खुदाई करते समय एक मृतक गाय व बछड़ा निकले। गौ भक्त महात्मा उस गाय को जीवित करने की सदेच्छा से 360 तीर्थों पर उस मृतक गाय को लेकर भ्रमण करते रहे लेकिन गाय जिन्दा न हो सकी। उनकी इस अवस्था को देखकर भगवान साधु रूप में उनके समक्ष प्रकट हुए तथा उन्हें कहा कि आप इस गाय को वहीं ले जाकर स्नान कराएं तो इसका उद्धार होगा। तब बाबा न्यालगिरि उनका परामर्श मान पुनः उसी स्थान पर आए तथा उसे इसी तालाब में स्नान करवाने पर गाय पुनजीर्वित हो गई। इस तीर्थ में भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्नान करना श्रेष्ठ समझा जाता है।