शृंगी ऋषि/शंखिनी देवी तीर्थ नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 22 कि.मी दूर कैथल-टोहाना मार्ग पर सांघन ग्राम में स्थित है। महाभारत मे कुरुक्षेत्र भूमि के तीन तीर्थों को मातृशक्ति की प्रतीक
देवी से सम्बन्धित बताया गया है जिनमें से एक यह शंखिनी देवी नामक तीर्थ है।
शंखिनीतीर्थमासाद्य तीर्थ सेवी कुरुद्वह।
देव्यास्तीर्थे नरः स्नात्वा लभते रूपमुत्तमम्।
(महाभारत, वन पर्व, 83/51)
अर्थात् हे कौरव श्रेष्ठ ! तीर्थ परायण मनुष्य को शंखिनी तीर्थ में जाना चाहिए। देवी के उस तीर्थ में स्नान करने पर मनुष्य उत्तम रूप को प्राप्त करता है। ब्रह्म पुराण में भी सर्वतीर्थ महात्म्य नामक अध्याय में इस तीर्थ का स्पष्ट नामोल्लेख उपलब्ध होता है:
सूर्यतीर्थं शंखिनी च गवां भवनमेव च।
(ब्रह्म पुराण 25.37)
अन्तर मात्र इतना ही है कि महाभारत में शंखिनी तीर्थ का उल्लेख गवां भवन के पश्चात् किया गया है तथा ब्रह्म पुराण में इसका उल्लेख गवां भवन नामक तीर्थ से पहले किया गया है। ब्रह्मपुराण में वर्णित शंखिनी को ही वामन पुराण मे संगिनी कहा गया है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इसी तीर्थ में शंखिनीदेवी ने महर्षि शृंगी की पूजा की थी और बेहर जख में तपस्या की थी।
इस तीर्थ के सेवन का पुण्य फल मात्र उत्तम रूप तक सीमित न रह कर अनन्त ऐश्वर्य प्रदाता तथा पुत्र-पौत्र आदि से समन्वित होकर विपुल भोगों का भोक्ता बना कर परम् पद की प्राप्ति करवाने वाला है।
इस तीर्थ पर एक विशाल सरोवर है। तीर्थ स्थित मन्दिर की भित्तियों पर मत्स्यावतार एवं रासलीला के प्रसंगों का चित्रण है।