इक्षुमति नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 20 कि.मी. दूर सरस्वती नदी के किनारे पोलड़ ग्राम में एक प्राचीन टीले पर स्थित है। पोलड़ नामक ग्राम में स्थित यह तीर्थ किसी देवता अथवा ऋर्षि से सम्बन्धित न होकर एक प्राचीन नदी से सम्बन्धित है। इस नदी का उल्लेख पाणिनी ने भी किया है। महर्षि बाल्मीकि कृत रामायण के अयोध्या काण्ड में जिस समय महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा से पाँच दूत कैकय देश के राजगृह नगर में जाते हैं तो उनके मार्ग में आने वाली इक्षुमति नदी का स्पष्ट उल्लेख है:
अभिकालं ततः प्राप्य तेजोऽभिभवनाच्च्युताः।
पितृपैतामहीं पुण्यां तेरुरिक्षुमतीं नदीम्।।
(रामायण, अयोध्या काण्ड 78/18)
अर्थात् वे दूत तेजाभिभवन नामक ग्राम को पार करते हुए वे अभिकाल नामक ग्राम में पहुँचे और वहाँ से आगे बढ़ने पर उन्होंने राजा दशरथ के पिता पितामहों द्वारा सेवित पुण्य सलिला इक्षुमति को पार किया। टीले से प्राप्त मृद्-पात्र, मुद्राएं एवं अन्य पुरावशेषों के आधार पर पता चलता है कि यहाँ आद्य ऐतिहासिक काल (6-5वी शती ई.पू.) से लेकर मध्यकाल तक अनेक संस्कृतियाँ फली-फूली। निश्चय ही इस कालांतर में यह तीर्थ भी अपने चरम स्वरूप में रहा होगा।