वृद्ध केदार तीर्थ कैथल
कुरुक्षेत्र भूमि के शैव तीर्थो में से एक प्रमुख तीर्थ
वृद्घकेदार नामक यह तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर कैथल नगर में स्थित है।
महाभारत एवं वामन पुराण में वर्णित कुरुक्षेत्र का यह तीर्थ अति प्राचीन है। वामन पुराण में इस तीर्थ को कपिस्थल तथा महाभारत में कपिष्ठल नाम से वर्णित किया गया है। सम्भवतः कपिष्ठल का ही अपभ्रंश कालान्तर में कैथल नाम से विख्यात हो गया। प्राचीनकाल में यह तीर्थ कपिष्ठल नाम से अपना महत्त्व बनाए हुए था लेकिन वर्तमान में इसे यहाँ स्थित वृद्ध केदार तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
वामन पुराण में ऐसा स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि कपिस्थल नामक तीर्थ में वृद्धकेदार नामक देव स्वयं विद्यमान हैं:
कपिस्थलेति विख्यातं सर्वपातक नाशनम्।
यस्मिन् स्थितः स्वयं देवो वृद्धकेदार संज्ञितः।
(वामन पुराण, 36/14)
ऐसा प्रतीत होता है कि पौराणिक काल में इस तीर्थ का महत्त्व काफी अधिक रहा होगा। वामन पुराण में इस तीर्थ का महत्त्व इस प्रकार वर्णित है
यस्तत्र तर्पणं कृत्वा पिबते चुलकत्रयम्।
दिण्डिदेवं नमस्कृत्य केदारस्य फलं लभेत्।
यस्तत्र कुरुते श्राद्धं शिवमुद्दिश्य मानवं।
चैत्र शुक्लचतुर्दश्यां प्राप्नोति परमं पदम्।
(वामन पुराण 36/16-17)
अर्थात् जो व्यक्ति उस स्थान पर तर्पण करके दिण्डि भगवान को प्रणाम कर तीन चुल्लु जल पीता है वह केदार तीर्थ एवं वाराणसी के आठ शिव तीर्थों में जाने फल प्राप्त करता है तथा जो व्यक्ति भगवान शिव में श्रद्धा रखते हुए चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को श्राद्ध करता है वह परमपद को प्राप्त करता है।
Vriddhakedar Tirtha Kaithal
One of the major Shaivite tirthas of Kurukshetra region
This tirtha is described as Kapisthal in the Vaman Puran and Mahabharata. Probably the corrupted form of Kapisthal became famous as Kaithal over time. The name Kapisthal is also confirmed by the location of the famous south-facing Hanuman temple in the tirtha complex. According to Vaman Puran, one gets the benefits of visiting the pilgrimages of Kedarnath and Varanasi by visiting this tirtha. The Shraddha performed here on the Chaturdashi of the Shukla Paksha of Chaitra month is considered as highly meritorious,