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विमलसर नामक यह तीर्थ, करनाल से लगभग 24 कि.मी दूर सग्गा ग्राम में स्थित है।
पौराणिक साहित्य में वामन पुराण के अन्तर्गत इस तीर्थ का धार्मिक महत्त्व बताते हुए स्पष्ट रूप से इसका नामोल्लेख मिलता है। वामन पुराण में ऐसा वर्णन मिलता है कि जो व्यक्ति इस तीर्थ में स्नान करता है, वह रुद्र लोक को प्राप्त करता है।
विमले च सरे स्नात्वा दृष्ट्वा च विमलेश्वरम्।
निर्मलं स्वर्गमायाति रुद्रलोकं च गच्छति।।
(वामन पुराण सरो.13/18)
महाभारत वन पर्व में भी तीर्थयात्रा प्रसंग के अन्तर्गत इस उत्तम तीर्थ का नाम एवं महत्त्व स्पष्टतया वर्णित है:
ततो गच्छेत् धर्मज्ञ विमलं तीर्थमुत्त्मम्।
अद्यापि यत्र दृश्यं ते मत्स्याः सौवर्णराजताः।
तत्र स्नात्वा नरः क्षिप्रं वासवं लोकमाप्नुयात्।
सर्वपापविशुद्धात्मा गच्छेत् परमां गतिम्।
(महाभारत, वन पर्व 82/87-88)
अर्थात् हे धर्मज्ञ ! तदन्तर विमल नामक उत्तम तीर्थ में जाना चाहिए, जहाँ स्वर्ण एवं रजत के रंग की मछलियाँ दिखाई देती हैं। इसमें स्नान करने से मनुष्य शीघ्र ही इन्द्रलोक को प्राप्त कर लेता है एवं सभी पापों से शुद्ध हो परमगति को प्राप्त करता है।
वर्तमान में इस तीर्थ पर आस्था रखते हुए यहां के निवासी अपने पितरों के निमित्त यहीं पिण्डदान करते हैं। यहां पर शिव एकादशी के दिन प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक रविवार को श्रद्धालु जन यहाँ पर दूध का दान करते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ होली के दिन मेला लगता है।
तीर्थ से लगते सग्गा ग्राम से एक उत्तर हड़प्पा कालीन कँुए के अवशेष तथा इसी काल के मृदभाण्ड़, मणके एवं चूड़ियाँ भी प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ से धूसर चित्रित मृदभाण्ड एवं आद्य-ऐतिहासिक काल के मृद पात्र भी मिले हैं। इन पुरावस्तुओं के मिलने से इस तीर्थ की प्राचीनता स्वयं सिद्ध हो जाती है।

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