कुरुक्षेत्र का यह प्रमुख तीर्थ थानेसर शहर के पश्चिम में थानेसर-बगथला मार्ग पर राजा हर्ष के किले के दक्षिण में स्थित है। इस तीर्थ का संबन्ध भगवान विष्णु से है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर क्षीरसागर में शयन करते हुए भगवान विष्णु के नाभि से एक कमल पुष्प उत्पन्न हुआ, उसी पुष्प से ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा ने यहीं पर भगवान विष्णु के आदेश से सृष्टि की रचना प्रारम्भ की थी।
चैत्र मास की कृष्ण चतुर्दशी को यहीं से कुरुक्षेत्र की प्रसिद्ध अष्ट कोसी परिक्रमा प्रारम्भ होकर कार्तिक मन्दिर, सरस्वती-घाट, स्थाण्वीश्वर महादेव मन्दिर, कुबेरघाट, सरस्वती घाट, रन्तुक यक्ष पिपली, शिव मन्दिर पलवल, बाण गंगा दयालपुर, भीष्मकुण्ड नरकातारी से होती हुई पुनः यही पहुँचकर सम्पन्न होती है। कुरुक्षेत्र की अष्ट कोसी परिक्रमा से जुडे होने के कारण इस मन्दिर की महत्ता एवं विशिष्टता सिद्ध होती है। तीर्थ के उत्तर में राजा हर्ष का किला नामक पुरातात्त्विक स्थल है जहाँ के उत्खनन से कुषाण काल से लेकर उत्तर मुगल काल तक की संस्कृतियों के निक्षेप मिलें है। निश्चय ही थानेसर के स्वर्णिम युग में इस मन्दिर का भी विशेष महत्त्व रहा होगा जिस कारण कुरुक्षेत्र की अष्ट कोसी परिक्रमा का प्रारम्भ और समापन यहीं से होता है।
तीर्थ स्थित मन्दिर नागर शैली में निर्मित है जिसका शिखर शन्कु आकार का है।