वंशमूलक नामक यह तीर्थ जींद से लगभग 17 कि.मी. की दूरी पर बरसोला ग्राम मे स्थित है। यह तीर्थ वंश की वृद्धि करने वाला कहा जाता है। महाभारत, पद्म पुराण तथा वामन पुराण में इस तीर्थ का नामोल्लेख एवं महत्त्व उपलब्ध होता है। महाभारत में इस तीर्थ का महत्त्व इस प्रकार वर्णित है।
वंशमूलकमासाद्य तीर्थसेवी कुरुद्वह।
स्ववंशमुद्धरेद्राजन स्नात्वा वै वंशमूलके।।
(महाभारत, वन पर्व 83/41)
अर्थात् हे राजन् ! वंशमूलक तीर्थ में पहुंच कर वहां स्नान करने वाला व्यक्ति अपने वंश का उद्धार कर लेता है।
वामन पुराण में भी इस तीर्थ के सम्बन्ध में दिया गया वर्णन महाभारत में दिए गए वर्णन से पर्याप्त साम्य रखता है:
वंशमूलं समासाद्य तीर्थसेवी सुसंयतः।
स्ववंशसिद्धये विप्राः स्नात्वा वेै वंशमूलके।
(वामन पुराण 35/16)
अर्थात् हे विप्र श्रेष्ठो! भली भांति इन्द्रियों का निग्रह करने वाला तीर्थ सेवी मनुष्य वंशमूलक नामक तीर्थ में जाकर वहां स्नान करने से अपने वंश की सिद्धि प्राप्त करता है।
इस तीर्थ के प्रति यहाँ के जनसाधारण में अथाह श्रद्धा एवं विश्वास पाया जाता है । निःसन्तान दम्पति यदि एक वर्ष निरन्तर यहाँ स्नान करें तो उन्हें अवश्य सन्तान प्राप्त होती है- ऐसा विश्वास जनसाधारण में पाया जाता है।
यहाँ तीर्थ स्थित एक मन्दिर के बाह्य भाग में गन्धर्व व किन्नरों की 9-10वीं शती ई. की प्राचीन मूर्तियाँ स्थापित हंै जिससे इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध होती है।