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वामन पुराण के अनुसार इस तीर्थ की स्थापना भगवान विष्णु ने वर्णाश्रम धर्म के नियमों का पालन करने वाले लोगों के लिए की थी जिसके अनुसार इस तीर्थ के जल में डुबकी लगाने से भक्तों की इक्कीस पीढ़ियां मुक्त हो जाती हैं।

महाभारत में  कुलपुन के नाम से तीर्थ का उल्लेख किया गया है जो इस भूमि के मोक्ष तीर्थों में से एक है।

यहां से मध्यकालीन मृद्भाण्डों एवं अन्य पुरावशेष मिलते हैं। यहां की अष्टकोणीय बुर्जियाँ उत्तर-मध्यकालीन लाखोरी ईंटों से बनी हैं।