• यह तीर्थ वर्णावती और दृषद्वती नदियों के संगम पर स्थित है जो कि सरस्वती नदी की सहायक नदियाँ थीं।
• लोककथाओं के अनुसार, पांडवों ने कुंती की सलाह पर यहां कर्ण की चिता बनाई थी। कहा जाता है कि कर्ण को गढ़थेश्वर तीर्थ में मारा गया था जो इस स्थान से 5 कि.मी. दूर है।
• तीर्थ परिसर से प्रतिहार कालीन ;9वीं-10वीं शती ई.द्ध मूर्तियां एवं मृदभाण्डों के अवशेष मिले हैं।